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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

अथ जूतम जूता जुत्ते जुत्ते ....




इन दिनों आधुनिक काल में ईराकी समाज से से निकली प्रथा ..पदम पादुका पदे पदे ..यानि कि जूता चलाइए ..अभियान ने धीरे धीरे भारत में भी दोबारा से अपना महत्व स्थापित किया है । दोबारा से इसलिए कहे हैं काहे से कि ..श्री लाल शुक्ल  जी के इस ....राग दरबारी ..के एक अनमोल पन्ने पर , हमें इस प्रथा के प्रमाणिक होने के पुख्ता सबूत मिले हैं , देखिए





"इस बात ने वैद्य जी को और भी गम्भीर बना दिया , पर और  लोग उत्साहित हो उठे । बात जोता मारने की पद्धति और परम्परा पर आ गयी । सनीचर ने चहककर कहा कि जब खन्ना पर दनादन -दनादन पडने लगें तो हमें भी बताना । बहुत दिन से हमने किसी को जुतियाया नहीं है । हम भी दो-चार हाथ लगाने चलेंगे । एक आदमी बोला कि जूता अगर फ़टा हो और तीन दिन तक पानी में निगोया गया हो तो मारने में अच्छी आवाज़ करता और लोगों को दूर दूर तक सूचना मिल जाती है कि जूता चल रहा है । दूसरा बोला कि पढे-लिखे आदमी को जुतियाना हो तो गोरक्षक जूते का प्रयोग करना चाहिए ताकि मार तो पड जाये, पर ज्यादा बेइज़्ज़ती न हो । चबूतरे पर बैठे बैठे एक तीसरे आदमी ने कहा कि जुतिआने का सही तरीका यह है कि गिनकर सौ जूते मारने चले , निन्यानबे तक आते-आते पिछली गिनती भूल जाय और एक से गिनकर फ़िर नये सिरे से जूता लगाना शुरू कर दे । चौथे आदमी ने इसका अनुमोदन करते हुए कहा कि सचमुच जुतिआने का यही तरीका है इसलिए मैंने भी सौ तक गिनती याद करनी शुरू कर दी है ।"

3 टिप्‍पणियां:

  1. is kitaab me kahi jikr aya hai hai ki sarkar ne deevaro par ADHIK ANN UPJAO ke naare likh diye hai, jaise ki kisan hi hai jo ann upjana nahi chahta aur sabe bada roda yahi hai ..... book is full of such satires and all of them are still relavent .. Brilliant writing.

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    1. आपने सच कहा जन मित्रम जी ये पुस्तक अपने आप में एक सभ्यता है , एक संस्कृति है ..इसे पढके एक अलग ही अनुभव हो रहा है । प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया

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  2. आपका बहुत बहुत शुक्रिया और आभार

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मैंने किताब को पढा और फ़िर लिखा ..आपने पोस्ट को पढा और ......लिखा क्या ??? अरे तो लिखिए न फ़िर ...क्या सोच रहे हैं जी

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